Ram aaenge lanka dahan 1917 movie:नमस्कार दोस्तों स्वागत करते है हम आपका अपने इस मनोरजन से भरे हुए आर्टिकल में दोस्तों आज बात करेंगे दुनिया की पहली भगवान् राम और सीता पर बनायीं गयी फिल्म लंका दहन के बारे में लंका दहन बिना आवाज़ की फिल्म साल 1917 में बनायीं गयी थी इस फिल्म के डायरेक्टर थे धुंडीराज गोविंद फाल्के जिन्हे दादा साहब फाल्के भी कहा जाता है।
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दादा साहब फाल्के ने ही भारत की पहली फिल्म राजा हरीश चंद्र भी बनायीं थी जो की 1913 में रिलीज़ की गयी थी। Ram aaenge lanka dahan 1917 movie ये एक सायलेंट फिल्म थी सायलेंट फिल्म वो होती है जिसमे किसी भी प्रकार की ध्वनि उत्प्नना नहीं होती है इन फिल्मो में मूक फिल्मे फेस इम्प्रेशन से अपने भाव को वयक्त किया जाता है आइये जानते है और ज्यादा लंका दहन फिल्म के बारे में।
कुछ रोचक जानकारी Ram aaenge lanka dahan 1917 movie के बारे में
दादा साहब फाल्के साहब ने आज से लगभग 107 साल पहले एक फिल्म बनायीं थी जो की भगवान राम पर आधारित थी और इस फिल्म में एक ही कलाकार ने भगवान राम और सीता के किरदार निभाए थे खबरों की माने तो दादा साहब फाल्के ने राजा हरीश चंद्र फिल्म के बाद एक लम्बा ब्रेक लिया और अपने दोस्तों और राजाओ से पैसे उधार लिए और फिर तैयार की लंका दहन फिल्म।
यहाँ पर आप को एक और इंटरस्टिंग बात बताते है के ये इंडियन फिल्म इंडस्ट्री की पहली डबल रोल फिल्म थी जिसमे लीड रोल में थे लीजेंड एक्टर अन्ना हरी सोलंकी दादा साहब के द्वारा बनाई गयी भारत की पहली फिल्म राजा हरीश चंद्र एक ऐसी फिल्म थी जहा से हमारे बॉलीवुड और इंडियन फिल्म इंडस्ट्री के सफर की शुरुवात की गयी थी बात करे अगर 1913 से 2024 के इंडियन फिल्म इंडस्ट्री के सफर के बारे में तो आज हमारी इंडियन फिल्म इंडस्ट्री दुनिया की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री के रूप में जानी जाती है।
लंका दहन में अन्ना हरी सोलंकी ने किया था एक साथ राम और सीता का किरदार
दादा साहब की फिल्मं लंका दहन जो की आयी थी 1917 में इस फिल्म में एना हरी सोलंकी ने डबल रोल किया था वो भी एक रोल में वो सीता बने थे और दूसरे रोल में राम का किरदार निभाया था जैसा की फिल्म के नाम से पता चलता है के लंका दहन फिल्म रामायण के उस हिस्से पर बनायीं गयी है जहा पर लंका का राजा रावण भेस बदल कर छल से सीता माता को अगवा कर श्री लंका ले जाता है तब श्री राम हनुमान जी को शांति दूत बनाकर लंका भेज देते है और जब हनुमान जी लंका पहुंचते है वह पहुंच कर रावण से बात करते है और रावण हनुमान जी की पूछ में आग लगा देते है तब हनुमान जी पूरी की पूरी लंका को आग लगा देते है फिर चाहे वो पेड़ हो या घर सभी को जलाकर रख कर दते है इसी को रामायण में लंका दहन का नाम दिया गया है।
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लंका दहन फिल्म को रिलीज़ हुए लगभग 107 साल हो चुके है लंका दहन अपने टाइम पर ब्लॉकबस्टर फिल्म हुई थी लंका दहन फिल्म ने अपने पहले हफ्ते में ही ३०००० रपये का कलेक्शन किया था जो की उस समय के अनुसर एक बहुत बड़ा अमाउंट हुआ करता था। हमें दादा साहब के बारे कुछ भी नहीं पता के उन्होंने हमारी इंडियन फिल्म इंडस्ट्री केलिए क्या क्या योगदान दिए है हम आशा करते है के हमारे इस आर्टिकल से आप को कुछ तो जानकारी जरूर हुई होगी इंडियन सिनेमा इंडस्ट्री के बारे में।
आदिपुरष जैसी बड़े बजट की फिल्मे भी फीकी दिखती है लंका दहन के सामने
आदिपुरष फिल्म का बजट 700 करोड़ रूपये था पर फिर भी इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर कमाल नहीं दिखाया फिल्म में महंगे स्टार कास्ट थे VFX था म्यूज़िक थी अच्छे गाने भी थे इन सब चीज़ो के होने के बाद भी फिल्म फ्लॉप रही वजह ये थी के ये फिल्म सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाने के लिए बनायीं गयी थी वही बात करे लंका दहन की तो इस फिल्म ने 1917 में रिलीज़ के अपने पहले हफ्ते में ही 30000 रूपये कमा लिए थे जबकी लंका दहन में न तो गाने थे न ही म्यूज़िक और न ही वॉइस न डायलगो VFX तो उस टाइम पर होता ही नहीं था और सबसे मज़े की बात तो ये है के एक ही एक्टर ने भगवान् श्री राम और माता सीता के पात्र निभाए थे इस फिल्म के चलने के वजह ये रही थी के इस फिल्म को भक्ति भाव से बनाया गया था लोगो को बताने के लिए के किस प्रकार से लंका दहन हुआ था।
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लंका दहन फिल्म की वजह से थियेटर बन गए थे मंदिर
दादा साहब की लंका दहन फिल्म को जब रिलीज़ किया गया था उस वक़्त जो लोगो इस फिल्म को देखने के लिए जाते थे सभी थियेटर के बहार ही चप्पल जूते उतार कर जाया करते थे थियेटर मंदिर जैसा लगने लगा था सभी फैमिली मेंबर एक साथ एक जगह पर बैठ कर इस फिल्म को देकते थे और भजन करते थे Ram aaenge का। आप सोचिये के कितना अद्भुद नज़ारा रहा रहा होगा न किसी के मन में द्वेष न पीड़ा सब भगवान श्री राम की भक्ति भावना में विलीन हुआ करते थे फिर चाहे वो किसी भी धर्म के क्यों न हो सभी ने उस टाइम पर इस फिल्मं को देखा था।
दादा साहब के संघर्ष की कहानी
दादा साहब के नाम से ही फिल्म इंडस्ट्री में दादा साहब फाल्के अवार्ड दिया जाता है दादा साहब का जन्म महारष्ट्र के नासिक में हुआ था और भरतीय फिल्म इंडस्ट्री को अपनी पहली फिल्म देने से पहले दादा साहब एक पेंटर और फोटोग्राफर थे फिर बाद में दादा साहब पर फिल्मे बनाने का शौक चढ़ा और उन्होंने अपनी पहली फिल्म राजा हरीश चंद्र बनायीं थी कहा जाता है के राजा हरीश चंद्र को बनाते वक़्त पैसो की कमी के कारण दादा साहब को अपनी प्रिंटिग प्रेस को भी बेचना पड़ा था पर उन्होंने हार नहीं मानी और फिल्म का निर्माण किया उनकी पत्नी फिल्म बनाने से न खुश थी वजह ये थी के दादा साहब ने अपनी पत्नी के गहने बेच दिए थे
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और साथ ही साथ घर के पीतल से बने सामान को भी दादा साहब ने बेचे वो इस लिए के दादा साहब लंदन जा कर फिल्म मेकिंग की तकनीक को सीखना चाहते थे फिल्म को बनाने के लिए एक फ़िल्मी कैमरा भी खरीदना चाहते थे। जब दादा साहब लंदन से वापस आये तब दादा साहब का भारत में घर तक बिक चुका था तब उन्होंने मुंबई के दादर इलाके में एक किराये का घर लिया और उसी घर में रहने लगे और उसी किराए के घर में दादा साहब ने राजा हरीश चंद्र की स्क्रिप्ट तैयार की उन्होंने सेट डिजाइन किया आर्टिस्ट लिए और फिल्म बनाने की तैयारी शुरू कर दी।
सात महीने इक्कीस दिन में तैयार हुए दादा साहब की पहली फिल्म
दादा साहब ने ७ महीने २१ दिन लगाए राजा हरीश चंद्र फिल्म बनाने में या ये कह ले के भारतीय इतिहास लिखने में क्युकी राजहरीष चंद्र भारत की पहली फिल्म थी २१ अप्रेल १९१३ को इस फिल्म का पहला प्रदर्शन शुरू किया गया ये शो कुछ खास लोगो के लिए ही रक्खा गया था इस फिल्म में सभी कलाकार मराठी थे राजा हरीष चंद्र में सभी किरदार पुरषो ने ही निभाए थे कोई भी महिला कलाकार नहीं थी पुरषो ने ही महिला कलाकार के रोल को निभाया था।
फिल्म की अवधि ४० मिनट की थी।
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